Chaitra Purnima Vrat Katha :चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा श्रवण मात्र से मिटते हैं पाप, बरसती है प्रभु की कृपा,खुलते हैं मोक्ष का द्वार

Chaitra Purnima Vrat Katha : चैत्र पूर्णिमा की 12 अप्रैल 2025 शनिवार को है। धर्मानुसार यह दिन खास है। जानिए इसदिन की महिमा चैत्र पूर्णिमा की व्रत कथा से...

Chaitra Purnima Vrat Katha  :चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा श्रवण मात्र से मिटते हैं पाप, बरसती है प्रभु की कृपा,खुलते हैं मोक्ष का द्वार
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Chaitra Purnima Vrat Katha चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा: हनुमान जन्मोत्सव और भगवान विष्णु की कृपा की अद्भुत गाथा : हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री हनुमान का जन्म हुआ था, जिसे भक्तगण "हनुमान जयंती" के रूप में पूरे श्रद्धा भाव से मनाते हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान हनुमान ने इसी दिन प्रभु श्रीराम के सहयोग हेतु धरती पर जन्म लिया था। यही कारण है कि चैत्र पूर्णिमा का दिन हनुमान जी की उपासना के लिए विशेष फलदायी माना गया है।

हनुमान जी ही नहीं, इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन अगर विधिपूर्वक व्रत रखा जाए, भगवान का नाम जप किया जाए और व्रत कथा का श्रवण किया जाए, तो भक्त को हनुमान जी की अपार कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

इस दिन सत्यनारायण व्रत कथा अथवा चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा का श्रवण करना और उसका पालन करना अत्यंत शुभ माना गया है।

चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक धनवान सेठ अपनी पत्नी के साथ रहता था। सेठानी अत्यंत धार्मिक स्वभाव की थी और प्रतिदिन भगवान विष्णु की पूजा भक्ति-भाव से करती थी। वह नियमपूर्वक व्रत रखती और भगवान के नाम का स्मरण करती थी। लेकिन दुर्भाग्यवश सेठ को धर्म और पूजा-पाठ में तनिक भी रुचि नहीं थी। उसे अपनी पत्नी का पूजा करना बिलकुल पसंद नहीं था।

एक दिन तो उसकी नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उसने सेठानी को घर से निकाल दिया। विवश सेठानी ने भगवान का नाम लेते हुए घर त्याग दिया और अनजाने रास्ते पर चल पड़ी। वह निरंतर भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए जंगल की ओर बढ़ने लगी। चलते-चलते वह एक जगह पहुंची जहां चार आदमी मिट्टी खोदने में लगे थे। वह उनके पास जाकर बोली, “भाइयों, मुझे किसी काम पर रख लो। मैं मेहनत कर लूंगी।”

उन लोगों ने उसे दया भाव से काम पर रख लिया, लेकिन सेठानी का शरीर अत्यंत कोमल था, और जल्द ही उसके हाथों में छाले पड़ गए। यह देखकर वे चारों बोले, “तुमसे यह काम नहीं होगा, तुम हमारे घर चलो और वहां का कामकाज देख लिया करो।” सेठानी ने उनकी बात मान ली और उनके साथ उनके घर चल दी।

उन चारों आदमियों की दिनचर्या बड़ी साधारण थी। वे प्रतिदिन चार मुट्ठी चावल लाते, उन्हें पका कर आपस में बांटकर खा लेते। यह देखकर सेठानी को बड़ा दुख हुआ। उसने विनम्र भाव से कहा, “अगर आप लोग मुझे आठ मुट्ठी चावल लाकर देंगे, तो मैं उन्हें पका कर भगवान को भोग लगाकर आप सभी को भोजन कराऊंगी।”

उन लोगों ने उसकी बात मान ली। अगले दिन वे आठ मुट्ठी चावल लाए। सेठानी ने पूरे श्रद्धा भाव से उन्हें पकाया, भगवान विष्णु को भोग लगाया और फिर भोजन परोसा। यह भोजन इतना स्वादिष्ट था कि सभी चकित रह गए। उन्होंने सेठानी से इसका कारण पूछा। सेठानी ने कहा, “ये भोजन भगवान विष्णु का झूठा है। उन्हीं की कृपा से इसका स्वाद अलौकिक हो गया है।”

इधर, नगर में सेठ की हालत दिन-ब-दिन खराब होने लगी। वह भूख-प्यास से व्याकुल रहने लगा। आस-पड़ोस के लोग उसका उपहास उड़ाने लगे कि वह तो केवल अपनी पत्नी के कारण ही भोजन करता था। तानों से व्यथित होकर वह भी जंगल की ओर निकल पड़ा, जहां कभी उसकी पत्नी गई थी।

चलते-चलते उसे भी वही चार आदमी मिट्टी खोदते दिखे। उसने जाकर विनती की, “मुझे भी अपने साथ काम पर रख लो।” उन्होंने उसे काम पर रख लिया, लेकिन जल्द ही उसके हाथों में भी छाले पड़ गए। यह देखकर उन्होंने उसे भी घर के कार्य में लगा लिया।

जब सेठ उनके घर पहुंचा, तब वह अपनी पत्नी को नहीं पहचान पाया क्योंकि वह घूंघट में थी। हर दिन की तरह सेठानी ने भोजन बनाया, भगवान विष्णु को भोग लगाया और सबको परोसा। लेकिन जब वह सेठ को भोजन परोसने लगी, तभी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उसका हाथ पकड़ते हुए बोले, “तुम यह क्या कर रही हो?”

सेठानी ने आश्चर्य से कहा, “मैं कुछ नहीं कर रही प्रभु, बस भोजन परोस रही हूं।” तभी भगवान विष्णु ने अपना स्वरूप प्रकट किया और चारों भाइयों ने भी उनसे दर्शन की प्रार्थना की। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें भी दर्शन दिए।

सेठ ने अपनी पत्नी को पहचान लिया और अपने बुरे व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। चारों भाइयों ने बहन को बहुत सा धन देकर विदा किया। इसके बाद दोनों पति-पत्नी अपने नगर लौट आए। अब सेठ भी भगवान विष्णु का भक्त बन गया और पूरी श्रद्धा से पूजा करने लगा। परिणामस्वरूप, उसके घर में फिर से सुख-शांति और समृद्धि लौट आई।

पूर्णिमा व्रत का फल और महत्व

चैत्र पूर्णिमा की यह कथा के अनुसार जो भी श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान विष्णु और हनुमान जी की पूजा करता है, उसे कभी कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता। इस दिन व्रत रखने, भजन-कीर्तन करने, और भगवान विष्णु एवं हनुमान जी के गुणगान से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख, शांति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।


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