जिस तरह प्रत्येक माह के दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत आता है, उसी तरह त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। एकादशी को पुण्यदायी व्रत माना गया है और प्रदोष को कल्याणकारी कहा गया है। इस समय भाद्रपद माह चल रहा है और 24 अगस्त दिन बुधवार को इस माह का पहला प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन पूजा-अर्चना और व्रत रहने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जा रहा है। माना जाता है कि कलयुग में महादेव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत सबसे खास व्रतों में से एक है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। त्रयोदशी तिथि का व्रत सायंकाल के समय किया जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत अगर सोमवार को है तो उसे सोम प्रदोष व्रत, मंगलवार को है तो भौम प्रदोष व्रत और अगर बुधवार को है तो बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। बुध प्रदोष व्रत की उपासना मुख्य रूप से शिवजी की कृपा और संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और ग्रह दोषों का भी निवारण होता है। भगवान शिव का यह व्रत बहुत ही कल्याणकारी माना गया है कि इस व्रत से सांसारिक जीवन के सभी कष्ट व पाप आदि से भी मुक्ति मिलती है। महादेव और माता पार्वती की कृपा से जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। संतान की इच्छा रखने वाले जातक प्रदोष व्रत के दिन पंचगव्य से महादेव का अभिषेक करना चाहिए।
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त और तिथि
त्रयोदशी तिथि की शुरुआत – 24 अगस्त सुबह 08 बजकर 30 मिनट
त्रयोदशी तिथि का समापन – 25 अगस्त सुबह 10 बजकर 37 मिनट
त्रयोदशी तिथि की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल संध्या के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले ही शुरू हो जाता है।
पारण का समय – 25 अगस्त
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत करने वाले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर भगवान शिव का ध्यान करें। फिर ‘अद्य अहं महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये’ मंत्र का जप करते हुए प्रदोष व्रत करने का संकल्प लें। इस दिन प्रदोष काल में ही भगवान शिव की पूजा की जाती है और पूरे दिन उपवास किया जाता है। ओम नम: शिवाय मंत्र का जप करते रहें। जो लोग व्रत रखते हैं, उनको दिन को समय भोजन नहीं करना चाहिए। सायंकाल के समय सूर्यास्त में तीन घड़ी का समय शेष रह जाए तो फिर से स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और फिर पास के शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा-अर्चना करें। साथ ही माता पार्वती की भी पूजा करें। सबसे पहले शिवलिंग और माता पार्वती का जल, गाय का दूध, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें और फिर उनको चंदन, धूप, दीप, अक्षत, फूल आदि अर्पित करें। इसके बाद शिवलिंग पर आक के फूल और बेलपत्र अर्पित करें। इसके बाद माता पार्वती को लाल चुनरी और सुहाग का सामान अर्पित करें। इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें और फिर प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें। इनके बाद भगवान शिव की आरती उतारें और मंत्रों का जप करें।
प्रदोष काल में भगवान शिव करते हैं नृत्य
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है और यह हर माह के दोनों पक्षों में प्रदोष व्रत रखा जाता है। एक शुक्ल और दूसरा कृष्ण पक्ष। इस तरह साल में 24 प्रदोष व्रत आते हैं। मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। ऐसे समय में जो भी जातक भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत के होने से कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है और सभी ग्रह-नक्षत्र का दोष दूर होता है।