आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है और माता के नौ रूपों में से उनके दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की आज पूजा हो रही है। माता ब्रह्मचारिणी देवी का वह स्वरूप है जिसमें माता तपस्वी रूप में अपने तेज से संसार में तप और ज्ञान का संचार कर रही हैं। माता ब्रह्मचारिणी तप में लीन रहती है इसलिए इनकी वेशभूषा भी तपस्वियों जैसी है।देवी भागवत पुराण में देवी का जैसा स्वरूप बताया गया है उसके अनुसार मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में कमंडलु है।
माता अपने तन पर पीत वस्त्र धारण करती हैं और उनके मुखड़े पर असीम शांति और होठों पर दिव्य मुस्कान है। माता गंभीर मुद्रा में रहती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं।पुराण में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री बनकर जन्म लिया। महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या शुरू कर दी। कठिन तपस्या में लीन रहने के कारण देवी पार्वती के उनके तपस्वी रूप को ब्रह्मचारिणी कहा गया।
नवरात्रि के दूसरे दिन भक्तों के मन में तप और साधना की ज्योत जलाने के लिए देवी के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय भक्तों को इस मंत्र से उनका ध्यान पूजन करना चाहिए।
दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
अर्थात जिनके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे हाथ में कमंडल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां दुर्गा मुझ पर कृपा करें।
शांत चित्त रहने वाली और तुरंत वरदान देने वाली हैं ब्रह्मचारिणी
माता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं। इसलिए इस रूप में इन्हें देवी सरस्वती रूप में भी जाना जाता है। इनका स्वरूप श्वेत और पीत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में दिखाया गया है। इनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है।
यह अक्षमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह ज्ञान और विवेक प्रदान करके जगत में प्रतिष्ठित और विजयी बनाती हैं। माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अति सौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली है।
ब्रह्मचारिणी माता की पूजा और लाभ
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा में लाल और पीले फूलों का प्रयोग करना चाहिए। माता को भोग में ऋतु फल, मखाना, और शक्कर का भोग लगाना चाहिए। इनकी पूजा से कुंडली में गुरु ग्रह और चंद्रमा के प्रतिकूल होने पर जो विपरीत प्रभाव प्राप्त होते हैं उनसे राहत मिलती है। इनकी भक्ति करने वाला साधक संसार में ज्ञान विज्ञान को प्राप्त करता है