Cheaper Medicine: नए साल में आम जनता को बड़ी राहत, कई दवाओं के घटने वाले हैं दाम

Low Cost Medicines: एमोक्सिसिलिन और पोटेशियम क्लैवनेट कॉन्बो Amoxycillin and Potassium clavulanate – ये एक एंटीबायोटिक दवा है जो काफी इस्तेमाल होती है. इसकी एक गोली की कीमत में 6 रुपये की कमी हो सकती है. इसी तरह दूसरी एंटीबायोटिक मॉक्सीफ्लोक्सीन Moxifloxacin 400 MG की एक टैबलेट की कीमत 31 रुपये से घटकर सीधे 21 रुपये हो सकती है.

Online Cheap Medicines: पैरासिटामोल. ये वो दवा है जिसका नाम भारत में हर कोई जानता है. वैसे आप इसे अलग-अलग ब्रांड के नामों से भी जानते हैं, लेकिन बुखार से लेकर बदन दर्द में ये दवा हर किसी के काम आती है. अब इस दवा के दाम भी कम होने वाले हैं. भारत में दवाओं के दाम तय करने वाली संस्था NPPA यानी NATIONAL PHARMACEUTICAL PRICING AUTHORITY ने 127 दवाओं के दाम कम किए हैं. कम कीमत के प्रिंट वाली दवाएं जनवरी के दूसरे हफ्ते से मार्केट में पहुंचने वाली हैं. सबसे पहले ये जानिए कि किस दवा की कीमत आज कितनी है और ये कितनी कम हो सकती है. पैरासिटामोल की कीमत आधी हो सकती है.

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एमोक्सिसिलिन और पोटेशियम क्लैवनेट कॉन्बो Amoxycillin and Potassium clavulanate – ये एक एंटीबायोटिक दवा है जो काफी इस्तेमाल होती है. इसकी एक गोली की कीमत में 6 रुपये की कमी हो सकती है. इसी तरह दूसरी एंटीबायोटिक मॉक्सीफ्लोक्सीन Moxifloxacin 400 MG की एक टैबलेट की कीमत 31 रुपये से घटकर सीधे 21 रुपये हो सकती है.

पैरासिटामोल 650 MG: 2 रुपए 30 पैसे की एक टैबलेट

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नई कीमत: 1 रुपए 80 पैसे की एक टैबलेट

एमोक्सिसिलिन COMBO: 22 रुपए एक टैबलेट

नई कीमत: 16 रुपए एक टैबलेट

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मॉक्सीफ्लोक्सीन 400 MG: 31 रुपए एक टैबलेट

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नई कीमत: 21 रुपए एक टैबलेट

ये वो राहत है जो तुरंत लोगों तक पहुंचेगी. लेकिन इसके अलावा बड़ी राहत की तैयारी भी की जा रही है. भारत में दवाओं के दाम तय करने के फॉर्मूले को बदलने पर विचार किया जा रहा है. भारत में चार संस्थाओं को ये स्टडी करने का काम सौंपा गया है कि भारत में दवाओं के दाम तय करने का नया फॉर्मूला क्या होना चाहिए. जो दवाएं सरकार के प्राइस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत नहीं आती, उनके दामों पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं है. सिवाए इसके कि वो एक साल में 10 प्रतिशत से ज्यादा दाम नहीं बढ़ा सकते.

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लेकिन दिक्कत दवा का दाम तय करने से ही शुरू हो जाती है. भारत में 2013 तक दवाओं के दाम लागत और मुनाफा जोड़कर तय होते थे. लेकिन अब दवा के दाम का उसकी लागत से कोई लेना देना नहीं रहा. जो दवाएं DCPO के तहत नहीं आती, उनके दाम निर्माता कंपनी खुद तय कर सकती है. यानी 10 रुपये में बनने वाली दवा का दाम वो 1 हजार भी रख सकती है.

20 हजार फार्मा कंपनियां कर रहीं काम

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अब NPPA ने गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु बायोइनोवेशन सेंटर और ब्रिज थिंक टैंक दिल्ली को ये स्टडी सौंपी है कि विदेशों की ड्रग पॉलिसी और भारत की पॉलिसी को स्टडी करके ये बताएं कि कैसे भारत में दवाओं को किफायती दामों पर बेचा जा सकता है.

फिलहाल सरकार केवल 886 फॉर्मूलेशन्स से बनने वाली 1817 दवाओं के दामों पर लगाम लगा पा रही है. देश में इस वक्त 20 हज़ार फार्मा कंपनियां काम कर रही हैं. कुछ दवाओं के दाम में मार्जिन 200 गुना से लेकर 1 हज़ार गुना तक हैं. हमने बाजार की दवाओं की तुलना जन औषधि स्टोर पर मिलने वाली दवाओं से की, जिन्हें देखकर आप समझ सकते हैं कि दवाओं की कीमत कितनी कम हो सकती है जो कि नहीं हो पाती. जन औषधि स्टोर चला रहे अनूप खन्ना का मानना है कि जेनेरिक दवाओं पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है और अब लोगों की जेब पर भार काफी कम हो सका है.

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जन औषधि केंद्रों की संख्या सिर्फ 9 हजार

जेनेरिक दवा बेचने का ज्यादा काम भारत में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र करते हैं. भारत में 8 लाख से ज्यादा केमिस्ट की दुकानें हैं और जन औषधि केंद्रों की संख्या अब जाकर 9 हजार हो पाई है. यानी कुल रिटेल दवा बाजार का 1 प्रतिशत. लेकिन पिछले कई सालों में जन औषधि की क्वाॉलिटी पर की गई मेहनत दिखाती है कि इस एक प्रतिशत ने भी लोगों को काफी फायदा दिया है. फार्मासूटिकल एंड मेडिकल डिवाइस ब्यूरो के सीईओ रवि दधीच के मुताबिक हर साल सेल बढ़ रही है. पिछले साल की 893 करोड़ के मुकाबले ये वित्तीय वर्ष खत्म होते-होते सरकार के जन औषधि केंद्र 1200 करोड़ की सेल कर चुके होंगे. सरकार का दावा है कि 893 करोड़ की दवाएं खरीदकर भारत के लोगों ने अपने 5300 करोड़ रुपए बचाए हैं. पिछले 8 साल की बचत को मिला दें तो लोगों को 18 हज़ार करोड़ का फायदा मिला है. दिल की बीमारी की दवा Atorvastatin 10 mg की एक गोली जन औषधि स्टोर पर 8 रुपये की है जबकि ब्रांडेड दवा 58 रुपये की.

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इसी तरह डायबिटीज की मेटफ़ॉरमिन metformin 1000 mg की एक गोली जन औषधि स्टोर पर 6 रुपये की है जबकि ब्रांडेड होते ही इसकी कीमत 20 रुपए हो जाती है. बाजार के मुकाबले ये फर्क 60 से 90 प्रतिशत तक का है. लेकिन जन औषधि स्टोर पर हर दवा नहीं मिलती.

दवाओं पर होता है ज्यादा खर्च

भारत में लोगों को हेल्थ केयर के लिए 70 प्रतिशत खर्च अपने बूते से बाहर का करना होता है. लोग अपना घर बेचकर या लोन लेकर इलाज करवाने को मजबूर हो जाते हैं. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा दवाओं पर होने वाले खर्च का है. हालांकि सरकार ने दिल की बीमारी, डायबिटीज और कैंसर जैसी ऐसी बीमारियों की दवाएं जेनेरिक जन औषधि स्टोर पर बेचनी शुरू कर दी हैं जो लोगों को उम्र भर खरीदनी होती है. लेकिन अभी दवा बाजार के केवल 1 फीसदी हिस्से पर ही काम हो पाया है. इसलिए ब्रांडेड दवाओं के दामों को काबू किए बिना लोगों को राहत मिलने वाली नहीं है. अगर आप अपने नजदीक का जन औषधि स्टोर खोज रहे हैं तो Jan Aushadhi Sugam App की मदद लें. दवा ना मिले, तो शिकायत करने का प्रावधान भी है.

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