Bhishma Dwadashi 2025: कब है भीष्म द्वादशी 2025? जानें व्रत और पूजा विधि, शुभ मुहूर्त
Bhishma Dwadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि को भीष्म द्वादशी या तिल द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 9 फरवरी 2025, रविवार को मनाया जाएगा।;
Bhishma Dwadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि को भीष्म द्वादशी या तिल द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 9 फरवरी 2025, रविवार को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान विष्णु और महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह को समर्पित है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और पूर्वजों का तर्पण एवं पिंडदान करते हैं।
भीष्म द्वादशी का महत्व
मान्यता है कि महाभारत युद्ध में घायल होने के बाद भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे। जब उन्होंने देखा कि हस्तिनापुर सुरक्षित है, तब उन्होंने माघ मास की अष्टमी को देह त्याग दिया। इसके चौथे दिन यानी द्वादशी को पांडवों ने भीष्म पितामह का तर्पण और पिंडदान किया था। इसलिए इस दिन पूर्वजों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे आशीर्वाद देते हैं। इस दिन तिल का विशेष महत्व है। तिल का दान, हवन और सेवन करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशहाली आती है।
भीष्म द्वादशी की पूजा विधि
सुबह की तैयारी:
- सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल की सजावट:
- घर के मंदिर में एक चौकी रखें और उस पर पीला वस्त्र बिछाएं।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
पूजा विधि:
- धूप-दीप जलाएं और भगवान विष्णु को तिलक लगाएं।
- मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का 108 बार जाप करें।
- तुलसी, पान, सुपारी और फल अर्पित करें।
- भोग में तिल के लड्डू, पंचामृत और मिठाई चढ़ाएं।
- अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें और प्रसाद वितरित करें।
तिल तर्पण:
- किसी योग्य ब्राह्मण के निर्देशन में अपने पूर्वजों के नाम पर तिल का तर्पण करें।
- तिल का दान करें और हवन में तिल का उपयोग करें।
तिल का महत्व
- तिल का दान अग्निष्टोम यज्ञ के समान फलदायी माना जाता है।
- तिल के सेवन से स्वास्थ्य लाभ होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
- इस दिन तिल का हवन करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
भीष्म द्वादशी का फल
- इस दिन व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
- जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
भीष्म द्वादशी के दिन जया एकादशी व्रत का पारण भी किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग पूजा-अर्चना के बाद व्रत खोलते हैं।