Tithi Kise Kahate Hain | हिंदी पंचांग के अनुसार तिथि क्या होती है? |
सूर्य एवं चंद्रमा द्वारा निर्मित विभिन्न कोणीय दूरियों को ही तिथि का नाम दिया गया है। जब सूर्य और चंद्रमा एक ही अंश में स्थित होते हैं, अर्थात उनकी दूरी शून्य होती है, तो यह स्थिति अमावस्या कहलाती है। जैसे ही चंद्रमा सूर्य से 12 अंश की दूरी पर पहुँचता है, एक नई तिथि का उदय होता है।;
Tithi Kise Kahate Hain - तिथि: सूर्य एवं चंद्रमा द्वारा निर्मित विभिन्न कोणीय दूरियों को ही तिथि का नाम दिया गया है। जब सूर्य और चंद्रमा एक ही अंश में स्थित होते हैं, अर्थात उनकी दूरी शून्य होती है, तो यह स्थिति अमावस्या कहलाती है। जैसे ही चंद्रमा सूर्य से 12 अंश की दूरी पर पहुँचता है, एक नई तिथि का उदय होता है।
इस प्रकार, कुल 30 तिथियाँ होती हैं—
15 तिथियाँ शुक्ल पक्ष की होती हैं, जब चंद्रमा सूर्य से दूर जा रहा होता है।
15 तिथियाँ कृष्ण पक्ष की होती हैं, जब चंद्रमा सूर्य के निकट आ रहा होता है या सूर्य की ओर बढ़ रहा होता है।
सूर्य एवं चंद्रमा की कोणीय दूरी के आधार पर निर्मित तिथियाँ इस प्रकार हैं:
एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक का समय एक चंद्रमास कहलाता है. कई स्थानों में यह गाड़ना पूर्णिमा के चंद्रमा से कि जाती है.
ज्योतिष शास्त्र में पंचांग का अर्थ पाँच अंगों से मिलकर बनना है। ये पाँच अंग हैं: तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इन्हीं पाँचों अंगों के संयोग से पंचांग बनता है। किसी भी शुभ मुहूर्त के लिए इन पाँचों अंगों को ध्यान में रखा जाता है। इनके आधार पर ही ज्योतिषी गणना करते हैं और फिर व्यक्ति के जन्म कुंडली के अनुसार स्थिर और चलित शुभ मुहूर्त निर्धारित किए जाते हैं।
पंचांग के पाँच अंग:
तिथि (Tithi):
तिथि चंद्रमा की स्थिति के आधार पर निर्धारित होती है। एक मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में बँटी होती हैं। तिथि के अनुसार ही धार्मिक और शुभ कार्यों का समय निर्धारित किया जाता है।
वार (Vaar):
वार सप्ताह के सात दिनों को कहते हैं। हर दिन का अपना एक विशेष महत्व होता है। जैसे, सोमवार को शिवजी की पूजा की जाती है, गुरुवार को विष्णु जी की पूजा की जाती है, आदि।
नक्षत्र (Nakshatra):
नक्षत्र चंद्रमा की स्थिति के आधार पर निर्धारित होते हैं। कुल 27 नक्षत्र होते हैं। हर नक्षत्र का अपना एक विशेष प्रभाव होता है। शुभ कार्यों के लिए नक्षत्रों को ध्यान में रखा जाता है।
योग (Yoga):
योग सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर बनता है। कुल 27 योग होते हैं। योग के अनुसार ही कार्यों की शुभता और अशुभता तय की जाती है।
करण (Karan):
करण तिथि के आधे भाग को कहते हैं। एक तिथि में दो करण होते हैं। कुल 11 करण होते हैं। करण के अनुसार भी शुभ और अशुभ कार्यों का निर्धारण किया जाता है।
पंचांग का महत्व:
पंचांग के इन पाँचों अंगों को मिलाकर किसी भी शुभ कार्य के लिए उचित समय निर्धारित किया जाता है। ज्योतिषी इन अंगों को देखकर व्यक्ति की जन्म कुंडली के अनुसार स्थिर (जैसे विवाह, गृह प्रवेश) और चलित (जैसे यात्रा, नौकरी शुरू करना) मुहूर्त निकालते हैं।
उदाहरण:
विवाह मुहूर्त: विवाह के लिए शुभ तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण का चयन किया जाता है।
गृह प्रवेश: गृह प्रवेश के लिए भी इन पाँचों अंगों को ध्यान में रखा जाता है।
नया कार्य शुरू करना: नया व्यवसाय या नौकरी शुरू करने के लिए भी पंचांग के अनुसार शुभ समय निर्धारित किया जाता है।
इस प्रकार, पंचांग ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें शुभ और अशुभ समय का ज्ञान देता है। यह हमारे जीवन को सुखी और सफल बनाने में मदद करता है।
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